बड़वानी(अशोक बथमा) शासन-प्रशासन को यह भली-भाॅंती पता है कि बड़वानी जिला चिकित्सालय में 5 से अधिक जिले के लोग ईलाज कराने के लिए तथा इन जिलों से मरीज रेफर होकर आते है। जिसके कारण कई बार अव्यवस्थाओं की स्थिति बन जाती है। शासन ने तत्काल बड़वानी जिला चिकित्सालय को 500 बिस्तर का दर्जा दिए की स्वीकृति तथा आवश्यक निर्देश देना चाहिए । चर्चा है कि आदिवासी बाहुल्य जिला होने के कारण इस जिले के जनप्रतिनिधि उचित प्रयास से वंचित रह जाते है जिसके कारण सरकार की जानकारी में ही नही रहता है कि इस जिले को प्राथमिकता के आधर पर क्या सुविधाऐं दी जाना चाहिऐ…? सही वजह है कि ऐसी-ऐसी जगहों पर मेडिकल कालेज खोले जा रहे है जहाॅ बिल्कुल भी औचित्यतता नहीं है। खैर मेडिकल कालेज तो दूसरी प्राथमिकता है सबसे पहले तो बड़वानी जिला चिकित्सालय को 500 बिस्तर का दर्जा तत्काल दिया जाना चाहिए। जिससे उचित संसाधन और व्यवस्थाऐं उपलब्ध हो सकें। अभी तो जिला चिकित्सालय की यह हालत है कि यहाॅ आॅख फोड़वा कांड के बाद से आज तक नैत्र ओपीडी शुरु ही नहीं हुई है। कई गरीब और बेसहारा लोग शासन-प्रशासन की इस अनदेखी का जबरजस्त शिकार हो रहे है। मोतियाबिन्द के मरीज शासकीय सुविधाओं से वंचित होकर निजी चिकित्सालयों या इन्दौर-गुजरात की शरण ले रहे है। आम जनता को समझ में ही नहीं आ रहा है कि शासन का करोड़ो रुपया खर्च होने के बाद भी शासकीय अस्पताल बड़वानी में मोतियाबिन्द के आपरेशन क्यों नही हो रहे है ? आखिर कब तक हाथ ऊॅंचा करता रहेगा शासन और जिला चिकित्सालय प्रबन्धन…? और कब तक परेशान होता रहेगा जिले का गरीब इन्सान…? क्या आॅख फोड़वा कांड की सजा जन्म-जन्मान्तरण भुगतना पड़गी जिले केव जिले के बाहर से आने वाले गरबों को…?
डरा हुआ है बड़वानी का प्रशासन और जिला चिकित्यालय प्रबन्धन
ज्ञात हो कि नवंबर 2015 में जिला अस्पताल की नेत्र ओटी में 86 मरीजों के मोतियाबिंद ऑपरेशन कि ए गए थे। करीब एक सप्ताह बाद से मरीजों की आंख में परेशानी आने लगी। बड़वानी व इंदौर में उपचार के बाद 86 में से 67 मरीजों की एक आंख की रोशनी हमेशा के लिए चली गई थी। इस घटना के बाद खासा हंगामा मचा। इंदौर, भोपाल, मुंबई, कोलकाता, दिल्ली आदि जगहों की अलग-अलग टीमों ने जिला अस्पताल पहुंच अलग-अलग एंगल से निरीक्षण व जांच की थी, लेकि न घटना क्यों हुई इस बात का खुलासा आज तक नहीं कि या गया है। घटना के बाद से ही जिला अस्पताल की नेत्र ओटी में मोतियाबिंद ऑपरेशन कि ए जाना बंद कर दिया गया था। बाद में ओटी को नए स्थान पर स्थानांतरित कर नए उपकरण भी लगाए गए, लेकि न कोई डॉक्टर मोतियाबिंद ऑपरेशन करने को तैयार नहीं था। करीब चार साल बाद शनिवार को मोतियाबिंद ऑपरेशन करने के लिए झाबुआ से टीम सुबह करीब 11 बजे जिला अस्पताल पहुंची। सुबह करीब 11.30 से तीन बजे के बीच आठ मरीजों के ऑपरेशन कि ए गए। ऑपरेशन झाबुआ से आए नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. जीएस अवासिया द्वारा बड़वानी जिला अस्पताल की नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. ज्योति बघेल की सहायता से स्टाफ की मौजूदगी में हुए।
