लंबी प्रतीक्षा के बाद आखिरकार विधानसभा चुनाव को लेकर एग्जिट पोल सामने आ ही गए। तमाम एजेंसियां अपने-अपने दावे कर रही हैं और सभी के दावों में विभिन्नताएं हैं। एग्जिट पोल जो भी कहें, किंतु जनता जानती है कि असल तस्वीर तो 3 दिसंबर को ही स्पष्ट होगी। तब तक प्रतीक्षा जारी है।

कहना न होगा कि चुनावों को लेकर होने वाले एग्जिट पोल कभी सटीक साबित होते हैं तो कभी औंधे मुंह गिर जाते हैं। वस्तुत: इन्हें इसलिए भी पूरा सत्य नहीं माना जा सकता क्योंकि इनके काम करने का तरीका बहुत प्रामाणिक नहीं होता। एग्जिट पोल वाली टीमें कुछ चुनिंदा शहरों और कुछ चुनिंदा गांवों से नमूने के तौर पर चंद लोगों से बात करती हैं और निष्कर्ष पर पहुंच जाती हैं। ये चुनिंदा लोग चावल की हांडी की तरह कतई नहीं माने जा सकते।

हांडी में पकने वाले प्रत्येक चावल की स्थिति, उसे मिलने वाली गर्मी और पकने की परिस्थितियां सब एक जैसी होती हैं इसलिए एक दाना पका, तो समझो सब पक गए। किंतु चुनाव इतनी आसान और सरल प्रक्रिया नहीं। एक ही घर में दो सगे भाई भी अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा के समर्थक हो सकते हैं और वे अलग-अलग दलों को वोट दे सकते हैं। ऐसे में एग्जिट पोल एजेंसियों के नमूना सर्वे को सत्य कैसे माना जा सकता है?

किंतु इसके बावजूद एग्जिट पोल को लेकर जनता में उत्सुकता इसलिए रहती है क्योंकि इनके कारण चुनाव परिणाम आने के कुछ दिन पहले तक राजनीतिक चर्चा के सुख का आनंद लिया जा सकता है। इनके कारण समाज में बहस शुरू होती है, दावे किए जाते हैं और सियासी जुगाली का सुख लिया जाता है। अत: एग्जिट पोल सत्य हैं या कोरा ढोल हैं, सच साबित होंगे या फिर गिरेगे औंधे मुंह यह 3 दिसंबर को स्पष्ट हो जाएगा।

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