पेटलावद। देशभर में प्रसिद्ध झाबुआ की गाय गोहरी परंपरा का निर्वहन दिवाली के बाद पड़वा पर हुआ। इसे देखने हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचे। गाय गोयरी पर्व का पेटलावद शहर सहित क्षेत्र में कई जगह अनोखा आयोजन हो रहा है। शहर में सुबह और शाम दो बार स्थानीय मुक्तिधाम पर मन्नतधारियों के ऊपर से गाय गुजरी और मन्नतधारी इस अनोखी परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। पेटलावद क्षेत्र के बाछीखेड़ा सहित कई ग्रामों में गाय गोहरी का यह अनोखा आयोजन किया जा रहा है।
आदिवासी अंचल में हर साल दिवाली से दो दिन बाद गाय गोहरी पर्व मनाया जाता हैं। इस पारंपरिक अनुष्ठान को मनाने का अलग ही तरीका है। पर्व को मनाने के लिए कुछ मन्नतधारी सड़क पर लेट जाते हैं और गायों को अपने ऊपर दौड़ाते हैं। भारत में गाय को मां के समान माना जाता है और पूजा की जाती है। लेकिन झाबुआ जिले में मनाया जाने वाला वार्षिक उत्सव गाय गोहरी के जैसा शायद ही कोई हो। यह त्योहार हर साल दीपावली के ठीक बाद मनाया जाता है, इस दिन को हिंदू नववर्ष के रूप में भी माना जाता है।
पुरातन मान्यता के मुताबिक, लोगों के ऊपर से गायों का काफिला गुजरेगा। कहा जाता है कि यह पर्व गाय और ग्वाला के रिश्तों के इजहार का पर्व है। यही कारण है कि ग्वाला गायों को अपने ऊपर से गुजारते हैं। गाय के पैरों को शुभ माना जाता है, इसलिए पारंपरिक रीति-रीवाजों के अनुसार नीचे लेटकर गाय के पैर को अपने शरीर पर रखवाते हैं। यह परंपरा आज भी उसी तरह निभाई जा रही है।
कुछ वर्ष पहले तक गाय गोहरी के दिन एक-दूसरे पर पटाखे चलाते थे। परिक्रमा के दौरान ग्रामीण और युवा आमने-सामने से एक दूसरे पर पटाखे फेंकते थे। जिसमें लोगों को चोट तक आ जाती थी। सुरक्षा की दृष्टि से प्रशासन ने इस दिन पटाखों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया। तब से पर्व के दिन सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम रहते हैं।
