बड़वानी / दिगंबर जैन मंदिर में आज परम  उत्कृष्ट समाधि धारक पूज्य राष्ट्र संत गणाचार्य विराग सागर जी महाराज की शिष्या श्रमणि विदुषी आर्यिका मां विकुंदन श्री माताजी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए बताया कि पंडित जुगल किशोर जी ने कितनी उत्कृष्ट और सुंदर बात बोली है फैले प्रेम परस्पर जग में मोह दूर ही रहा करे ,वो कह रहे है कि प्रेम अलग चीज है और मोह अलग चीज है ,परस्परोगृह जीवनम ,दोस्ती सभी से हो पर मोह किसी से ना हो और राग पूज्य पुरुषों से करोगे गुरुओं से अनुराग रखोगे तो कभी ना कभी वीतराग के मार्ग को प्रशस्त कर लोगे ,यदि संसारी प्राणी से मोह रख लिया तो भव भव भ्रमण करवाएगा ,जुड़ना बहुत कठिन है पर टूटना बहुत आसान है एक बार हम टूट गए तो हर व्यक्ति हमारा फायदा उठाएगा। हम सब प्राणी को मोह है प्रेम नहीं है ,सबको स्वार्थ है जो वात्सल्य था जो प्रेम था वो समाप्त हो गया सबको किसी न किसी से अपेक्षा है ,बेटे को मां से,पिता से,भाई से बहन से आपस में कोई ना कोई अपेक्षा है और जहां अपेक्षा है वहां उपेक्षा निश्चित है,यदि आपने अपेक्षा करना छोड़ दिया तो निश्चित ही आपको सुख और शांति की अनुभूति होगी ।प्रेम अपेक्षा है वात्सल्य नहीं है ,जब आदमी पास रहता है तो उसकी कीमत नहीं समझता है और जब दूर चला जाता है तो उसकी कीमत समझता है और बाद में हम कहते है कि वो बहुत अच्छा आदमी था हम रोज बारह भावना,आलोचना पाठ पढ़ते है यदि उसको अपने जीवन में अपने अंतरंग में  उतारने का कभी प्रयास नहीं करते हम इंद्रियों के वशीभूत हो कर अपनी तृष्णा को छोड़ नहीं पाते और पापों को छोड़ नहीं पाते हम पाप के गड्ढे को भरते जा रहे है ,हम कीमती समय  ,मनुष्य पर्याय को समझ नहीं पाए ,हमे संतों का समागम मिला फिर भी हम अपने अगले भव को सुधारने का प्रयास नहीं कर पाए ।

राम चंद्र जी जब वनवास गए तब उनके साथ केवल लक्ष्मण और सीता थे  और 14 वर्ष वनवास में बिताया लेकिन उन्होंने अपनी वाणी के प्रभाव से जंगल में रहने वाले लोगों को अपना बनाया उनका दिल जीता  तथा   उनको ही अपना परिवार बना लिया और रावण से विजय भी प्राप्त की ।

जीनागम ने , शास्त्रों में एक एक शब्द कई भावार्थ लिए ज्ञान की खान है उसको ग्रहण करो ,गुण ग्रहण का भाव रखो नकारात्मकता को अपने से बाहर निकाले,यदि चित्त खराब होता है तो पित्त बढ़ता है और जब चित्त अच्छा होता है तो पित्त कम होता है अतः आचार्य कहते है कि अपने चित्त को शुभ उपयोग में लगाए और कभी अपने लिए भी समय निकाल कर शांत मन से अपने बारे में सोचना अपने से बुरा व्यक्ति कोई नहीं मिलेगा अतः संयम का पालन कीजिए और अब्रह्म से बचे एक बार के अब्रह्म से 9 लाख जीवो का घात होता है उससे बचे ,नियमों में बंधे और भोगों को छोड़े संसार में विरक्ति की जगह आसक्ति बढ़ती जा रही है इस वजह से ही आपदाएं बढ़ती जा रही है जैसे आंधी,तूफान,अतिवृष्टि ,अनावृष्टि,युद्ध,दुर्घटनाएं आदि हो रहे है अतः जिन धर्म के शास्त्रों को समय निकाल कर एक एक लाइन पढ़े और उसके अर्थ को अपने आचरण में उतार कर अपने जीवन को सफल बनाए और आने वाले भव को सुधारे, अभी पुण्य करोगे तो अगले भव में निश्चित ही सुख प्राप्त होगा धर्म की एफ डी कर लो तब जाकर हमे पुनः जैन कुल और मनुष्य योनि मिलेगी।

अंत में विगत दिनों में राष्ट्रीय जैन एकता मंच द्वारा भगवान महावीर के जन्म कल्याणक  महोत्सव के अवसर पर वीर श्राविका सम्मान समारोह आयोजित किया गया था जिसमें हर जिला,संभाग और प्रदेश इकाई से जैन समाज की महिलाओं के द्वारा सेवा भावना ,कर्तव्यनिष्ठा,समाज और संतो के प्रति उत्कृष्ट सेवा कार्य के लिए प्रदान किए गए थे ,विनीता जैन अध्यक्ष ने बताया कि इस उत्कृष्ट सम्मान वीर श्राविका सेवा सम्मान बड़वानी के लिए सपना मनीष जैन,जितेंद्र नीना गोधा,प्रवीणा लोकेश  पहाड़िया ने प्राप्त कर गौरव बढ़ाया है इन सभी को परम पूज्य आर्यिका विकुंदन श्री माताजी के शुभ हाथों से प्रशस्ति पत्र और पारितोषिक देकर सम्मानित किया गया ।

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