भोपाल। प्रदेश में महापौर और अध्यक्ष का चुनाव जनता की जगह पार्षदों के जरिए कराने की प्रणाली को लेकर सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव की आहट सुनाई देने लगी है। भाजपा नहीं चाहती है कि चुनाव प्रक्रिया में किसी प्रकार का बदलाव हो। इसको लेकर वो विरोध भी दर्ज करा चुकी है। केंद्रीय संगठन तक भी मामला पहुंच गया है। उधर, सरकार ने भी रुख साफ कर दिया है कि वो नई प्रणाली से ही चुनाव कराने के अपने फैसले पर अडिग है। अब सबकी निगाहें राज्यपाल लालजी टंडन के रुख पर टिक गई हैं। बताया जा रहा है कि वे सोमवार को इस मामले में अपना फैसला सुना सकते हैं। मालूम हो कि शनिवार को देर शाम मुख्यमंत्री कमलनाथ का संदेश लेकर उनके प्रमुख सचिव अशोक बर्णवाल ने राज्यपाल से इस संबंध में मुलाकात भी की थी।

सूत्रों का कहना है कि नगरीय निकाय चुनाव प्रक्रिया में बदलाव को लेकर सरकार ने नगर निगम और नगर पालिका अधिनियम में संशोधन के लिए जो अध्यादेश राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजा है, उसे उन्होंने न तो मंजूरी दी है और न ही वापस लौटाया है, जबकि राज्य निर्वाचन आयोग से जानकारी छुपाने पर सजा के प्रावधान को वे मंजूरी दे चुके हैं।

नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने इसे राजपत्र में प्रकाशन के लिए भी भेज दिया है। बताया जा रहा है कि राज्यपाल लालजी टंडन ने सरकार की चुनाव प्रणाली में बदलाव संबंधी तर्कों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

दरअसल, भाजपा लगातार इस बात को उठा रही है कि सरकार चुनाव के स्थान पर सत्ता के प्रभाव का इस्तेमाल कराकर अपने लोगों को महापौर बनाना चाहती है। यही वजह है कि जनता से सीधे चुनाव की जगह पार्षदों के माध्यम से चुनाव का रास्ता अख्तियार किया गया है।

इससे चुनाव में मसल और मनी पॉवर (ताकत और पैसे) का चलन भी बढ़ेगा। निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव भी नहीं हो पाएंगे। जबकि, सरकार का मानना है कि जब प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाता है तो फिर महापौर व अध्यक्ष के लिए अलग व्यवस्था क्यों होनी चाहिए। चुने हुए पार्षद अपने बीच में से नगर निगम के लिए महापौर और नगर पालिका व परिषद के लिए अध्यक्ष का चुनाव करें। यदि अविश्वास की स्थिति बनती है तो फिर दो साल बाद प्रस्ताव लाया जा सकता है।

सूत्रों के मुताबिक शनिवार को मध्य प्रदेश के पूर्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता को बुलाकर भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पूरी जानकारी ली। गुप्ता ने रक्षामंत्री राजनाथ सिंह से भी मुलाकात की। उधर, कानूनी रास्ते पर भी विचार शुरू हो गया है।

राज्यपाल ने राइट टू रिकॉल को लेकर की पूछताछ

अध्यादेश के प्रभावी होते ही राइट टू रिकॉल की व्यवस्था खत्म हो जाएगी। खाली कुर्सी और भरी कुर्सी का चुनाव नहीं होगा, क्योंकि यह व्यवस्था तब कारगर थी, जब महापौर या अध्यक्ष सीधे जनता से चुना जाता। अप्रत्यक्ष प्रणाली में महापौर या अध्यक्ष को पार्षद चुनेंगे। यदि अविश्वास प्रस्ताव आएगा भी तो पार्षद ही तय करेंगे कि संबंधित व्यक्ति को पद पर रखना है या नहीं। सूत्रों का कहना है कि राज्यपाल ने अधिकारियों से इस प्रावधान को लेकर पूछताछ की है।

विपक्ष की बात सुनें पर अध्यादेश रोकें : तन्खा

राज्यपाल द्वारा निकाय चुनाव व्यवस्था में बदलाव के अध्यादेश को मंजूरी नहीं दिए जाने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा ने ट्वीट किया है। उन्होंने उनसे आग्रह किया है कि अध्यादेश को न रोकें, आप एक कुशल प्रशासक थे और हैं। संविधान में राज्यपाल कैबिनेट की अनुशंसा के तहत कार्य करते हैं। इसे राज्य धर्म कहते हैं।

विपक्ष की बात सुनें मगर महापौर चुनाव बिल न रोकें। यह गलत परंपरा होगी। जरा सोचिए। वहीं, भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने तन्खा के ट्वीट के प्रत्युत्तर में एक अन्य ट्वीट कर कहा कि संविधान का पालन और उसका संरक्षण राज्यपाल का राजधर्म होता है। राजधर्म की व्याख्या अपने कांग्रेसी हितों की दृष्टि से नहीं की जा सकती।

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