बड़वानी / नर्मदा बचाओ आंदोलन व्दारा जारी प्रेस नोट मे बताया किग्राम पिछोड़ी में नर्मदा किनारे की एक एक खेत जो नर्मदा घाटी विकास प्राकिधरण के नाम से, भूअर्जित होने पर दर्ज है, रेत माफियाओं से खरीदकर अवैध रेत खनन चलाया जा रहा है। जिन किसानों को 60 लाख या फर्जी रजिस्ट्री में फसने के बाद आंदोलन की याचिका में सर्वोच्च अदालत के आदेश से 15 लाख रुपये प्राप्त हुआ है, उनसे भी लाखों रुपये देकर माफिया खरीद रहे है, नर्मदा किनारे की जमीन वहाँ से रेत निकालकर अन्य गाँवों की तरह (खेडी, पिपलुद, बगुद, छोटा बड़दा और धार जिले में मनावर, धरमपुरी, कुक्षी तहसीलों के गांव रतवा, निंबोला, मलनगांव, करोंदिया इत्यादि में) दिन और रात बडी मशीनें तथा ट्रैक्टर्स और डम्पर्स खुले आम चलते हुए शासन-प्रशासन इसे रोकने के लिए तैयार नही है। हर स्थान पर 60/100 फीट गहरी खदानों से सैकड़ों टन रेत निकालने से जल चक प्रभावित होकर नर्मदा की बरबादी पर कोई अधिकारी चिंतित नही है। रेत माफिया और उन्होंने पैसा बंटोरकर साथ लिए ग्रामीण युवा, किसान, मजदुरों की सेना सार्वजनिक संपदा की चोरी करने में माहिर और हिंसक बनती जा रही है।

गांव के भाई बहनों ने सालों से अहिंसक सत्याग्रह के द्वारा पुनर्वास और मत्स्यव्यवसाय का हक लिया तो भी पुनर्वास अधूरा है। मात्र आज नदी किनारे की समूची खेती जमीन, छोटी पहाड़ी खोदकर बोम्या, बलखड, बंधान, कल्याणपुरा के रेत खनन कर्ताओं तथा सेंधवा, इंदौर से उन्हें वाहन (जेसीबी, पोकलेन, ट्रैक्टर्स, डम्पर्स) देने वालों ने नर्मदा की बरबादी आगे धकेली है। इस पूरे कार्य में संपूर्ण अवैधता और गांव की खेती फसल रास्ते ही क्या, नर्मदा पर भी गंभीर असर होते हुए म.प्र. शासन का हर विभाग कार्यवाही टाल रहा है। एकाध दूसरा ट्रैक्टर पकड़ना, कुछ पंचनामा, एकाध एफ.आय.आर. दर्ज करना इसके अलावा कुछ नहीं हो रहा है। नर्मदा आंदोलन के गांववासियों की ओर से कभी पकड़ाया तो भी दूसरे दिन चालू करने में माफियाओं की टोली जरा भी हिचकिचाती नही है।

आज पिछोड़ी में हुआ अनुभव यह हकीकत साबित करता है। नदी किनारे की, धनराज भीलाला की खलेके लिए उपयोग में ली जाती जमीन को राल्या पिता भुवान ने बताया कि 90 हजार रुपये में ग्राम बलखड के दिनेश पिता गिलदार बामनिया को बेचना तय हुआ। इस डूब क्षेत्र की नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के कार्यपालन यंत्री के नाम दर्ज जमीन को बेचने का तथा खनन का कोई अधिकार न होते हुए उस जमीनमें कल दिन और रात में मशीन चलाकर दिनेश ने खुदाई करके रेत निकाली। इसे रोकने कुछ ग्रामवासी और मेधा पाटकर सहित नर्मदा आंदोलन के कार्यकर्ता पहुँचने पर, “यहाँ मेरे परिवार का दशकों पुराना मकान था,” यह झूठा दावा राज्या भाई ने किया, जिसका कोई कागजी सबूत नहीं था। नर्मदा ट्रिब्यूनल का फैसला और 06/05/2015 का उच्च न्यायालय का आदेश होते हुए भी उसका पूरा उल्लंघन हो रहा है। 2022 तक के म.प्र. रेतखनन नियमों का उल्लंघन और पूरा क्षेत्र खोदकर मिट्टी के सैकड़ों ढेर नर्मदा में बहाने और डूबने के लिए तैयार, सब दूर पाये गये।

इतने में पिछोड़ी के नालों में छुपाके रखी दो पोकलेन मशीन्स ढूंढ निकाली तो उसके गये। सुबह से खनिज विभाग, राजस्व विभाग और पुलिस विभाग को बार-बार संदेश देकर भी लिए कोई तैयारी नहीं थी। खनिज विभाग में नहीं एक अधिकारी था, न ही कोई क्लक, चपरासी बैठे थे। सभी अधिकारीयों के फोन्स बंद थे। राजस्व विभाग में सभी केवल अनुविभागीय आबकारी /एस.जीएम) को ही जिम्मेदार मान रहे थे जबकि कलेक्टर और एसपी भी जबलपुर में दर्ज प्रकरण में प्रतिवादी रहें है और दोनों को समय-समय पर कानूनी दायरा और धरातल की स्थिति संबंधी सूचित करते रहें हैं। एस.डी.ओ.पी और टी.आई ने यह जिम्मेदारी हमारी नहीं है, कहकर पिछोड़ी पहुँचने से इन्कार कर दिया। आखिर कुछ माध्यमकर्ताओं ने पिछोडी पहुँच कर पूरी हकीकत देखी जानी उन्होंने एस.डी.एम को सूचित करने पर एस.डी.एम धनगर जी ने पुलिस दल भेजना मंजूर किया। लेकिन रेत माफियाओं को पूरी खबर पहुँच कर उनकी तैयारी शुरु हुई। मीडिया के साथी निकल जाते ही जबरन 40 लोग मुँह ढांककर पिछोडी में पहुँचे। उन्होंने कार्यकर्ताओं पर कुछ पत्थर मारा करके उन्हें पोकलेन से दूर भगाया। भगवान भाई सेप्टा से मोबाईल और पैसा चुराया गांव से हमारे लिए इकट्ठी की रोटीयों, खाना छीना । कुछ थप्पड मारना, घेरना, गाली गलौज करना, हमारी गाडी, जिसमें मेघा पाटकर और कुछ किसान साथी थे. उसे रोककर रास्ता बड़े पत्थर, लकडी-पेड डालकर बंद करना आदि किया और धमकीयाँ देते हुए, हमें घेरकर पोकलेन की दोनों मशीने गांव से निकालकर ले गये। इस टीम में हिंसकता थी, जो बोम्या, बलखड, बधान, और कल्याणपुरा गांव से आये थे, यह पता चला।

इसके बाद तत्काल टी.आई के साथ पुलिस टीम की एक गाडी गांव में पहुंची, जिनके साथ कोई राजस्व या खनिज विभाग का नुमाइंदा नही था, तो पंचनामा और जप्ती कैसे होती ? जाहीर है कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण, राजस्व और खनिज इस भयावह अपराध को और नर्मदा पर बढ़ते असरों को नजर अंदाज कर रहें है।

हमारी मांग है कि न्यायालय के सभी आदेश हरित न्यायाधिकरण के आदेश कानून नियम ताक पर रख कर हो रहा यह नर्मदा और प्रकृति पर अत्याचार रोका जाए। जमीन के केता, विक्रेता, खनन में निवेशक, खननकर्ता मालिक मजदूर परिवहन कर्ता (ट्रैक्टरके मालिक एवं ड्रायव्हर्स), जगह-जगह जिनकी जमीन / मकान पर रेत संग्रहित है वे सभी ग्रामवासी तथा रेत के खनन के लिए वाहन मशीन उपलब्ध कराने वाले रेत के विक्रेता भी सभी की जाँच करवाकर अपराधी प्रकरण दर्ज हो। ग्रामवासी जो इस अवैधता और विनाश को रोकते हैं, उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए।

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