बड़वानी/ शहर में रेत माफियाओं की जिम्मेदार अधिकारियों से पकड़ को लेकर जनचर्चा है…यह कि जब भी शिकायतें होती है…अखबारों में छपता है…नर्मदा बचाओें संगठन पकड़ा-धकड़ी करता है तो प्रशासन कुंभकरणी नींद से उठ खड़ा होता है…! दो-चार दिन कार्रवही की …यहाॅ ठेर पकड़ा…वहाॅं का ठेर पकड़ा…अखबारों में छपा… बस हो गया काम….? लेकिन जनचर्चा है कि रेत माफियाओं को इससे कोई फर्क नही पढ़ता है। सदैव की भाॅति रोजना सुबह 4 बजे से 7 बजे तक बैखौफ रेत माफिया अवैध रेत का शहर में ही नहीं ग्रामीण अॅचलों में सप्लाय करते है और वो भी जिलाधिकारियों की तर्ज पर….बताया गया है कि सुबह 4 बजे से 7 बजे तक रेत माफियाओ को जिस जगह रेत डालना होती है…तो टेªक्टर के बहुत आगे दो मोटर सायकल गार्ड होते है जो यह देखते है कि रास्ता साफ है कि नही….फिर वो लोग सिंगनल देते है कि बिंदास आ.. जा….फिर क्या 100 किमी की गति से बिना नम्बर की टेªक्टर-ट्राली दौड़ती चली आती है…!! और उन दो बाडी गार्ड की क्ष़त्र छाया में बिना पुलिस और प्रशासन के खौप के…. तय स्थान पर अवैध रेत डालकर कर चले जाते है।… बताया जाता है कि रेत माफियाओं को किसी भी कार्रवाही का डर नही होता है…!! अगर प्रशासन को अवैध कारोबार पर रोक लगाना ही है तो जैसे पहले….पहले…? मकान बनाते थे…उसमें लकड़ी के दरबाजे-खिड़की आदि लगाते थे तो वन विभाग वाले आ जाते थे …आपने लकड़ी कहाॅसे खरीदी…टीसी बताओ…बिल बताओ…आदि आदि…सही को कोई टेंशन नही…लेकिन जो अवैध में लाया…फिर वन विभाग शुरु… ऐसे ही प्रशासन ने नव निर्मित भवनों-मकानों पर निगरानी के लिए कर्मचारी नियुक्त करना चाहिए….कि रेत कहाॅ से और किससे खरीदी…आदि-आदि….!! जय हो .

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