भोपाल। नगरीय निकायों के चुनाव की संभावनाओं को देखते हुए शिवराज सरकार बड़ा बदलाव करने जा रही है। नगर निगमों में महापौर, नगर पालिका एवं नगर परिषदों में अध्यक्ष पद के चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराए जाएंगे, यानी इन्हें सीधे जनता चुनेगी। नए नियम को अध्यादेश के जरिये लागू करने की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। सरकार के स्तर पर शुक्रवार देर रात तक मंथन चलता रहा। भाजपा सरकार के विशेष रणनीतिकारों के बीच जारी मंथन के स्पष्ट संकेत हैं कि शिवराज सरकार अध्यादेश के जरिये कमल नाथ सरकार के उस फैसले को पलट देगी, जिसके अनुसार महापौर और अध्यक्षों का चुनाव सीधे जनता द्वारा न करके पार्षदों के माध्यम से होना था।
हालांकि इस नियम को शिवराज सरकार दिसंबर 2020 में पलटने के लिए कैबिनेट से पारित करवा कर अध्यादेश ला चुकी थी, लेकिन विधानसभा से विधेयक पारित नहीं होने के चलते यह अध्यादेश स्वत: समाप्त हो गया था। सुप्रीम कोर्ट के रवैये को भांपते हुए प्रदेश सरकार भी महसूस कर रही है कि स्थानीय निकायों व पंचायतों के चुनाव कराने पड़ेंगे। ऐसे में एक तरफ सरकार कोर्ट में आवेदन देकर चुनाव में ओबीसी आरक्षण की लड़ाई भी लड़ रही है, वहीं दूसरी तरफ आंतरिक तौर पर चुनाव की तैयारियां भी जारी हैं।
2019 में कमल नाथ सरकार ने कराया था अधिनियम में संशोधन
वर्ष 2019 में तत्कालीन कमल नाथ सरकार ने मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम में संशोधन कर महापौर, नगर पालिका एवं नगर परिषद के अध्यक्षों के सीधे निर्वाचन को खत्म कर दिया था। यानी इन पदों पर निर्वाचन पार्षदों द्वारा होने का नियम लागू हो गया था, जो आज भी प्रभावशील है। इसे ही अब शिवराज सरकार पलटने जा रही है। माना जा रहा है कि प्रत्यक्ष चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को शहरी क्षेत्रों में खासा लाभ मिल सकता है। दूसरी वजह पार्षदों द्वारा अध्यक्ष के निर्वाचन में समीकरण बिठाने की मशक्कत भी मानी जा रही है। यदि महापौर और अध्यक्षों का भाग्य पार्षदों की संख्या पर निर्भर होगा, तो नगर निगम, नगर पालिका और नगर परिषदों में राजनीतिक समीकरण को लेकर अस्थिरता की आशंका हमेशा बनी रहेगी। भाजपा अविश्वास प्रस्ताव जैसे किसी भी गतिविधि से बेहतर जनता द्वारा सीधे चुनाव का विकल्प मान कर चल रही है। शहरी क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ मजबूत है इसलिए पार्टी को उम्मीद है कि सीधे निर्वाचन से भाजपा को फायदा होगा।
