बड़वानी (निप्र) दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र बावनगजा जी मे चल रहे सिद्ध चक्र मण्डल विधान के दूसरे दिन प्रातः भगवान के अभिषेक और शांतिधारा मुनिश्री के मुखारविंद से सम्पन्न हुई, शांतिधारा और अभिषेक करने का सौभाग्य किरण विनोद जी दोशी बाकानेर, आई. सी. जैन सा. मंडलेश्वर और कमलेश जैन फरीदाबाद को प्राप्त हुआ।
अभिषेक के पश्चात नित्य नियम की पूजन, नव देवता की पूजन की गई

आज सिद्धों के आराधना में 32 अर्घ चढ़ाए गए, आचार्य श्री की पूजन का सौभाग्य समस्त निमाड़ वासियों और बाहर प्रान्त से आये श्रावकों ने की धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए मुनि श्री संधान सागर जी ने कहा भगवान की भक्ति के 2 मार्ग है एक साधना और दूसरा आराधना , भगवान के सामने भक्ति का अवसर आता है तो वृद्ध व्यक्ति भी झूम झूम कर नृत्य करने लग जाता है और अर्घ चढ़ाकर भक्तिमय पूजा करता है आराधना का मार्ग सरल है और साधना का मार्ग कठिन है , आप जो करते हो वो आराधना है और हम श्रमण जो करते है वो साधना है । तप का मार्ग कठिन है । आचार्य ने कहा है आप प्रभु की भक्ति तल्लीन और तन्मयता से करते हो जो साधना है , साधना का मार्ग नदी को पार करने जैसा है जहां पर ध्यान भी रखना है और एकाग्रचित्त भी होना है ।
मुनिश्री ने कहा कि अष्ठानिका पर्व पर नंदीश्वर द्वीप की पूजा होती है और ये महा कल्याणकारी पूजा होती है, स्वर्ग में 8 करोड़ 56 लाख अकृत्रिम चैत्यालय है उनकी पूजा होती है सिद्ध चक्र मण्डल विधान की पूजन सिद्ध क्षेत्र पर तीन गुना विशुद्धि से होता है । जो मजा तीर्थ में है वो मजा तीर्थंकर के पादमूल में भी नही है ।
दुर्लभ सागर जी महाराज ने बावनगजा के अक्षरों का महत्व और अर्थ बताते हुए कहा कि संसार की बाधाओं से दूर होना है तो आजाओ बावनगजा , यहाँ से साढ़े पांच भव्य जीव ने मोक्ष प्राप्त किया है ,यहाँ पर देवो ने भी आकर मोक्ष कल्याँक मनाया है । यह भी एक तरह की रण भूमि है यहाँ पर आप भक्ति रूपी, शास्त्र रूपी भावना से कर्म रूपी भावना से विजयी प्राप्त करेंगे ।आप सिद्ध भूमि में आये है यहाँ प्रभु की भक्ति में रम जाओ । आप जब तक राग का त्याग नही करोगे वैराग्य नही मिलेगा हम यहाँ सर्वस्व पाने के लिए आये है और ये पर्व के दिन है ये पर्व के दिन बहोत ही पावन होते है अष्ठानिका पर्व साल में 3 बार आता है ये प्रभु भक्ति का सीजन होता है जिसमे पूण्य की जितनी कमाई कर सकते हो कर लो जैसे आप अपने व्यापार के सीजन में धन कमाते हो ,वैसे ही ये धर्म का सीजन है , आप अपने व्यापारिक सीज़न में भूख,प्यास, थकान, ठंड ,गर्मी सब भूल जाते हो वैसे ही इस धर्म के सीजन में भी सब भूल कर प्रभु की भक्ति के व्यापार में लग जाओ क्योंकि प्रभु की भक्ति के व्यापार में कभी घाटा नही होता जितना लगाओगे उससे कही ज्यादा पाओगे ,भक्ती के द्वारा प्राप्त किया पूण्य कभी चोरी नही होता, कभी घाटा नही होता व्यापार में धन कमाने की कोई सीमा होती है भक्ति में कोई सीमा नही होती व्यापार 24 घण्टे नही चलता जबकि भक्ति 24 घण्टे चलती है। दोपहर के सत्र में मुनि महाराज ने सिद्धचक्र के बारे मे विस्तार से समझाया, शाम को मण्डल , भगवान और मुनिसंघ की आरती हुई ।
उपरोक्त जानकारी मनीष जैन द्वारा प्राप्त हुई ।
