वर्ष  2018 के विधान सभा चुनाव मे भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। जहां 2013 के चुनाव मे भाजपा को 165 सीटे मिली थी जो 2018 के चुनाव मे घटकर 109 रह गई और कांग्रेस को 114 सीटे मिली जिसके चलते प्रदेश मे कांग्रेस की सरकार बनी। कांग्रेस के असन्तुष्ट विधायको ने पाला बदला और भाजपा मे शामिल हो गए नतीजा पुनः भाजपा की सरकार बन गई, 2020 के उप चुनाव मे भाजपा को 127 सीटे मिली और कांग्रेस को 96 सीट पर संतोष करना पड़ा। मध्यप्रदेश मे अगले साल विधान सभा  के चुनाव होना है 2018 की पुर्नरावृति न हो ऐसे में पौने तीन साल के सरकार के कार्यों की वास्तविकता (रियलटी) परखने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद मैदान में उतर गए हैं। वे जिलों का दौरा कर रहे हैं और जहां गड़बड़ी का पता चलता है, वहां मंच से ही कार्रवाई भी कर देते हैं। उनके उड़न खटोले (हेलिकाप्टर) की आवाज ने गड़बड़ी या काम में देरी-लापरवाही करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों की नींद उड़ा दी है। हालात यह हैं कि जिम्मेदार अधिकारी- कर्मचारी निर्माण सहित सभी तरह के काम तय समय में पूरे हों, इसकी भरसक कोशिश कर रहे हैं। वे समय पर काम करने में आने वाली अड़चनों की जानकारी पहले ही अपने वरिष्ठों को दे रहे हैं। ताकि मौका पड़ने पर खुद का निर्दोष साबित कर सकें।

मुख्यमंत्री का उड़न खटोला पिछले दिनों छिंदवाड़ा, बैतूल, डिंडोरी और मंडला के गांवों में अचानक उतरा। बगैर किसी पूर्व कार्यक्रम के मुख्यमंत्री को अपने बीच देख स्थानीय नागरिक खुश हो गए, तो मैदानी अधिकारियों और कर्मचारियों की जान सांसत में आ गई। इन जिलों में मुख्यमंत्री बांध, नहर, छात्रावास और स्कूल का निरीक्षण करने अचानक पहुंच गए। ग्रामीणों और बच्चों से बात की, तो कई खामियां सामने आईं। मुख्यमंत्री ने लापरवाही पर अधिकारियों-कर्मचारियों को निलंबित भी किया। चौहान के इस नए रूप से अधिकारी और कर्मचारी दहशत में हैं।

सांसद-विधायकों की भी जिम्मेदारी तय

मिशन-2023 की तैयारी में जुटे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सांसद और विधायकों को भी मैदान में उतार दिया है। उन्हें जनता के बीच जाने के साथ पात्र लोगों को राज्य और केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ दिलाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। इस बहाने से सरकार हर उस व्यक्ति तक पहुंचने की कोशिश कर रही है, जो सरकारी योजनाओं का लाभ ले रहे हैं।

भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी बनी मिशन 2023 की राह में चुनौती

मध्य प्रदेश में चुनावी आहट के बीच कार्यकर्ताओं की पूछ-परख भी बढ़ने लगी है। कार्यकर्ताओं का मन टटोलने के साथ ही भाजपा उनकी नाराजगी दूर करने पर भी गंभीरता से काम कर रही है। संवादहीनता, काम न होना, महत्त्व न मिलने जैसी शिकायतों को लेकर संगठन पदाधिकारियों और प्रदेश के मंत्रियों से भी चर्चा शुरू हो गई है।

दरअसल, पीढ़ी परिवर्तन और कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं के कारण पार्टी कार्यकर्ताओं का बड़ा वर्ग नाराज होकर घर बैठ गया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों और कार्यकर्ताओं के बीच समरसता के दावे कमजोर हैं, वहीं पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं को भविष्य की चिंता भी सता रही है। इन परिस्थितियों में भी उनकी पार्टी में पूछ-परख ना होना नाराजगी को बढ़ावा दे रही है। अब पार्टी के सामने चुनौती यह है कि कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर कैसे किया जाए? कार्यकर्ताओं को न केवल सक्रिय करना है, बल्कि जनता के बीच भी भेजना है। केंद्र व प्रदेश की भाजपा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के अलावा पार्टी के पक्ष में बेहतर माहौल बनाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी कार्यकर्ताओं पर ही है। हालांकि कार्यकर्ताओं का आरोप है कि उन्हें न तो सम्मान मिल रहा है, न कोई पूछ रहा है, बल्कि उनके द्वारा काम ना करा सकने की स्थिति में जमीनी पकड़ भी कमजोर पड़ रही है। कार्यकर्ताओं द्वारा उनसे बेरुखी के आरोप स्थानीय पदाधिकारियों ही नहीं, संगठन और प्रदेश के मंत्रियों पर भी लगाए जाते रहे हैं।

अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा अपने प्रत्याशियों के नाम फाइनल करने से पहले मंत्रियों के परफारमेंस का अनुमान लगाने के लिए बारीकी से अध्ययन कर रही है। प्रदेश की सत्ता और संगठन की उच्च स्तरीय बैठक में भी मंत्रियों से सीधा सवाल किया गया कि कार्यकर्ताओं से आपके संबंध कैसे हैं और टिकट मिलने की स्थिति में जीत की संभावनाएं कितनी हैं?

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