बड़वानी / भारत राष्ट्रा की कालगणना लाखों वर्ष पुरानी हैं, हमारे वेद, उपवेद, पुराण, ग्रन्थों में शनिदेव को न्याय का देवता कहा गया हैं। भारत का न्यालयतंत्र दुनिया का सबसे प्राचीन न्यायतंत्र रहा हैं। मुगलकालीन और अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी में इंडिया के न्यायतंत्र को अंग्रेजों ने अपनी रीति और नीति से बनाया था, अंग्रेजों की नीति फुट डालों और राज करो रही हैं। इंडिया में अंग्रेजों के द्वारा थाँमस बैबिंगटन मैकाले की अध्यक्षता में बनाए गए कानूनों को 164 वर्षों बाद भारत पूरी तरह से न्याय में बदल रहा हैं।
01 जनवरी 1860 से लागू अंग्रेजी कानून आईपीसी (इंडियन पेनल कोड), सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता), इंडियन एविडेंस एक्टी को बदल कर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), भारतीय साक्ष्य अधिनियम में परिवर्तित हो रहा हैं। 1. भारतीय न्याय संहिता में 21 नये अपराध जुड़े हैं और 41 धाराओं में सजा बढाई गई है, पहली बार 6 अपराधों में सामूदायिक सेवा की सजा जोड़ी गई है, 2. एफआईआर दर्ज करने और केस लड़ने का तरीका अब बदलेगा, जीरो एफआईआर को कानूनी मान्यता दे दी गई है। 3. अब हत्या, लूट, बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों में भी घर बैठे तुरंत हो सकेगी ई-एफआईआर, 4. नए कानून में नागरिक सुरक्षा पर जोर दिया गया हैं, 5. पूरे कानून को तकनीक और फॉरेंसिक के आधार पर तैयार किया गया है, ताकि अपराधी को सजा मिल सके, 6. दुष्कर्म से जुड़े नियमों को सख्त किया गया हैं, 7. नए कानून के तहत बच्चों से अपराध करवाना या आपराधिक कृत्य में शामिल करना दंडनिय अपराध हैं, 8. नाबालिक बच्चा / बच्ची की खरीद-फरोख्तं जघन्या अपराध है, 9. नाबालिग बच्ची से सामूहिक बलात्कार के लिए आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान है, 10. देशविरोधी हरकतों के लिए नए कानून बनाए गए है, 11. इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य जैसे वीडियों, फोटों इत्यादि को नए कानून में जगह दी गई है, गवाहों के लिए ऑडियों, वीडियों से बयान का विकल्पक और भी अनेक परिवर्तन नए कानून में किए गए आजादी के 77 साल बाद हमारी न्यायप्रणाली पूर्णतया स्वदेशी हो रही हैं। इन कानूनों को बनाने के लिए प्रधानमंत्री आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी ने अगस्त 2019 में सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों, देश के सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और देश के सभी कानून विश्वविद्यालयों को पत्र लिखे थे। वर्ष 2020 में सभी, महामहिम राज्यनपालों, मुख्यमंत्रियों और सांसदों एवं संघशासित प्रदेशों के महामहिम प्रशासकों को पत्र लिखे गए। इसके बाद व्यापक परामर्श के लिए 18 राज्यों , 6 संघशासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट,16 हाई कोर्ट, 5 न्यायिक अकादमी, 22 विश्वाविद्यालय, 142 सांसद, लगभग 270 विधायकों और जनता ने इन कानूनों पर अपने सुझाव दिए हैं, लंबी चर्चा, परिचर्चा, तर्कों के आधार पर विषयों का विशेषज्ञों का चिन्तन हुआ, भारत सरकार की गृह मंत्रालय की कमेटी के सदस्या के रूप में परिचर्चाओं में भाग लिया हैं। भारतीय स्वादेशी कानून लागू होने के लिए खरगोन-बड़वानी क्षेत्र (निमाड़) के जनमानस की ओर से स्वागत करता हूँ।
