बड़वानी /  सेंधवा के एक प्रभारी कर्मचारी का उज्जैन ट्रांसफर 2 महीने पहले हो चुका था। साम दाम दंड भेद का मुहावरा हम सब ने सुना था। लेकिन इस ट्रांसफर ने इसका बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया। एक सरकारी कर्मचारी के जगह विशेष के प्रेम का प्रदर्शन साफ दिखाई देता है। इनके चिपको आंदोलन की सब जगह चर्चा है।

बताया जाता है कि हाल ही में साहब उज्जैन के लिए जैसे तैसे रिलीव हुए । लोकल अधिकारियों के आशीष से दो महीने से जुगाड़ बैठा रखी थी कि उन्हें रिलीव ना किया जाए। कहीं राजनीतिक गठजोड़ बैठाया तो कहीं अपने चहेतो के माध्यम से जुगत जमाई। इस पर भी शासन ने आर्डर कैंसिल नहीं किया तो समाज के पुनडारियों की भी मदद ली। वह भी दौड़े दौड़े भोपाल गए लेकिन नतीजा सिफर निकला।  लोकल नेता पंचायत चुनाव के दौरान सत्ताधारी पार्टी की मदद की दुहाई देते हुए उन पर फिदा थे। लोकल नेता पंचायत चुनाव में गड़बड़ी कर सत्ता धारी पार्टी को फायदा पहुंचाने का एहसान चुकाने के लिये इस कर्मचारी के सामने नतमस्तक थे। कमजोर और दिशाहीन विपक्ष पंचायत चुनाव के दौरान हुई गड़बड़ी की लड़ाई नहीं लड़ पाया था, और उस कर्मचारी से सेट हो गया था। अब विपक्ष पंचायत चुनाव मुद्दे पर सक्रिय दिखाई दे रहा है। इनकी संपत्ति की जांच भी दायरे में आने वाली है।

सेंधवा के लोग नजूल की तकलीफों और अन्य नोटिसों के लिए के लिए हुजूर को जिम्मेदार मान रहा है। लोग कहते हैं कि अपने अधिकारियों को अपने इशारों से नचाने में हुजूर माहिर हैं। डायरेक्ट युवा अफसरों की आंख कान नाक बने हुए है और उन्हें एहसास दिलाने में सफल होते हैं कि उनके बगैर उनका गुजारा नहीं होगा। इतने दिनों से जमे हुए हैं कि सब की नस भी पकड़े हुए हैं। इस चर्चित अधिकारी की चर्चा अब हमारे जिला मुख्यालय तक भी पहुंच गई है।

जनप्रतिनिधियों ने भी एड़ी चोटी का जोर लगाकर उसे रिलीव करवाने का नाकाम प्रयास किया । उन्हें भी आश्वासन पर आश्वासन ही मिलते रहा । अब हुजूर क्षेत्र की तेज तर्रार डायरेक्ट आईएएस कलेक्टर के निशाने पर आ चुके हैं। पहले तो उन्होंने कलेक्टर को राजस्व वसूली में अपनी कलाकारी के बहाने मार्च के बाद रिलीव करने का झांसा दिया । लेकिन अब उनकी कलई खुल चुकी। रिलीविंग को चैलेंज करते हुए हुजूर कोर्ट चले गए और कई तथ्यों को छुपा कर कुछ दिनों की राहत लेकर आ गए। कहीं बच्ची के नर्सरी में एडमिशन जैसे लचर कारण तो पत्नी की नौकरी का हवाला जिले में रिक्तियां और तो और शासन के आला अधिकारियों को स्थानांतरण नीति का पालन नहीं करने का हवाला दे दिया। यह नहीं बताया कि पहले बड़वानी जिले के निवाली फिर सेंधवा में काफी समय बिताने के बाद कुछ दिनों के लिए नीमच गए और फिर सेंधवा आकर जमे हुए हैं।

 

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