बड़वानी(निप्र) आज प्रातः 7.40 मिनट पर दिगम्बर जैन समाज के समाधि सम्राट आचार्य श्री अभिनंदन सागर जी महाराज की शिष्या गणिनी आर्यिका माँ सुप्रकाशमती जी माताजी का गणपुर से बड़वानी नगर में मंगल प्रवेश हुआ, माताजी  ससंघ का कसरावद रोड़ पर सन्मति जिनिंग उद्योग परिसर में समाज जन ने मंगल आगवानी की ,माताजी और संघ को समाजजन बैंड बाजो के साथ जैन मंदिर जी लेकर गए माताजी ने मन्दिर में भगवान के दर्शन किये और धर्म सभा को संबोधित किया सम्बोधित करने के पूर्व माताजी का अति संक्षिप्त में परिचय मनीष जैन द्वारा कराया गया और चारित्र चक्रवर्ती समाधि सम्राट आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज के चित्र पर दीप प्रज्वलन समाज के महामंत्री सुरेश चंद जी काला( गांगली) और वरिष्ठ मुन्नालाल जी जैन ने किया शास्त्र भेंट युवासंघ  के सदस्यों द्वारा किया गया, माताजी के पाद प्रक्षालन समाज के महिला मंडल द्वारा किया गया । माताजी ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि आप बहोत भाग्यशाली हो जो सिध्दक्षेत्र कि तलहटी में बैठे हो पर सिद्ध भूमि पर निवास करने वाले सभी श्रावक कई बार सिद्धालय में जाकर आगया किंतु सिद्ध अवस्था को प्राप्त नही कर पाया । सिद्ध भूमि पर रहने वाला श्रावक सोचता है कि हम स्वयं सिद्ध है हमे संतो की क्या आवश्यकता, हमे सिद्धों की क्या जरूरत है । और सिद्धालय में जाने वाला जीव भी भटकता रहता है ।सम्मेद शिखर की भूमि में कोई पौधा और वनस्पति भी पैदा होती है तो वो भव्य जीव है जो भी पैदा हो रहा है वो अपने विचारों में जी रहा है ।आप भाग्य शाली है कि आप सिध्दक्षेत्र के पास जन्म लिए है, आपको सन्तो के दर्शन मिल जाते है । साधु का विहार 2 बात के लिए होता है , सिद्ध क्षेत्र के दर्शन और धर्म प्रभावना के लिए होता है । सन्तो का जीवन नर्मदा नदी के जल के समान पवित्र और शीतल होता है ।

नर्मदा नदी में नहाने से जैसी शीतलता और शांति सुख मिलता है वैसे ही सन्तो रूपी नदिया से हमे ज्ञान के सुख और शांति मिलती है जो तैर कर नदी  पार हो जाता है उसी सन्तो रूपी नदी से ज्ञान के प्राप्त कर इस भवसागर से पार हो जाओगे।साधु की साधना पोज़िटिव एनर्जी की तरह होती है जो झुक कर सन्तो को नमस्कार करते है उनकी उंगलियों के माध्यम से उनकी नेगेटिव ऊर्जा बाहर। आजाती है और सन्तो के चरण छुते ही हमको उनकी दिव्य पोज़िटिव एनर्जी और आशीर्वाद से अपने सर पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह कर देते है हमारे संस्क्रति में इसी लिए हमारे से बड़ो, वरिष्ठों, साधु,सन्तो और श्रेष्ठ और ज्येष्ठ और भगवान के चरण स्पर्श करने की परंपरा है हम अपने नमस्कार को इतनी भक्ति से करे कि हमारे नमस्कार से चमत्कार हो जाये , हमारे देवालय , और साधु संत ऊर्जा के भरपूर भंडार है इसीलिए हमारी संस्कृति में चरण स्पर्श का कही न कही वैज्ञानिक दृष्टिकोण है । आप चमत्कार के पीछे मत भागो अपनी संस्क्रति और सन्तो की सेवा करके ही चमत्कार देख सकते हो आचार्य समन्त भद्र स्वामी की आस्था और श्रद्धा की वजह से पिंडी फ़टी और उसमे से चन्द्रप्रभु भगवान प्रकट हुए ।

   माताजी के साथ मे 4 आर्यिका माताजी सुहित मति जी ,भावना मति जी, सुगीत मति जी, सुवेग मति जी माताजी विराजमान है ।

   सुप्रकाश मति जी माताजी को मात्र 13 वर्ष की अल्पायु में ही वैराग्य होगया था , माताजी की दीक्षा को 40 वर्ष होगये है इन 40 वर्षों में उन्होंने भारत वर्ष की यात्रा की व कई भाषाओं की जानकार है , माताजी को 2007 में गणिनी आर्यिका का पद राजस्थान के शेषपुर में आचार्य श्री अभिनंदन सागर जी महाराज ने विशाल पंचकल्याणक के दौरान प्रदान किया था ।

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